कॉलेज का वो पहला दिन कुछ याद है तुम्हे..
कुछ याद है मुझे।।
शूरू दिन सब थे अनजान
धीरे धीरे होने लगी दोस्तों से पहचान।।
कुछ चहरे अपने लगे तो कुछ पराय लगे।
किसी को देख कर दिल में एक अजीब सी हलचल मचने लगी
तो वही कैंटीन के किसी कोने में दोस्तों की महफ़िल जमने लगी।।
कभी किसी टीचर ने डांट दिया
पर बुरे वक़्त में हर टीचर ने हमारा साथ दिया।।
खाव्ब तो हमारे थे
पूरा करने में टीचर्स ही तो सहारे थे।।
होस्टल में मस्ती भरी वो रातें
चुप चुप कर मैगी बना कर हम खाते।।
नोट्स पुरे करने के लिए दुश्मन से भी कर लेते यारी
बस यही तो अब याद रह गई सारी।।
जन्मदिन की सुबह की वो दुःख भरी कहानी
जो अब रुलायगी सारे जिंदगानी।।
क्या याद है तुम्हे वो कॉलज के दिन
जहा आकर हमने ज़िन्दगी जीना सीखा
दोस्तों के लिए मरना सीखा
नहीं भूल पाओगे
वो कॉलेज का पहला दिन
और कॉलेज का आखरी दिन।।
दो गज की ज़मीं थी कफ़न था तिरंगा।। आँखों में नमी थी ,छाती था खून से रंगा।। हार जीत की न कोई वजह बाकि थी,न था कोई पंगा।। न बाकि था निपटाने के लिए कोई दंगा।। शहीद का साथ जुड़ा , मिल गया साहस का चमन। लौट के न आया फिर मैं, तो रूठ गया ये वतन।। खून बहा कर लिया जो पाकिसातनियो ने मज़ा।। आत्मा मेरी पूछ रही किस बात की मिली मुझे सजा।। न मैंने किसी का भाई मारा न किसी का बेटा।। फिर भी क्यों रो रहा फफक फफक कर मेरा बेटा।। मुझे कुछ नहीं एक जवाब चाहिए।। इस सोई हुई सरकार से एक हिसाब चाहिए।। कौन लौटायगा मेरे परिवार को बीते हुए कल ।। कौन संवरेगा मेरे परिवार का आने वाला कल।। मुझे कुछ नहीं मुझे इन्साफ चाहिए।। बस मेरी मौत का मुझे इन्साफ चाहिए।।अमित पटेल
Comments
Post a Comment