बहु नहीं इन्हें दहेज़ चाहिए।
किसी की बेटी के बदले इन्हें कार कुर्शी और मेज चाहिए।।
जब धूम धाम से ब्याह कर के लाते है।
तो फिर क्यों दहेज़ के लिए उन्हें तड़पाते है।।
घर का सुख नहीं बल्कि इन्हें पैसों की भूख मिटानी है।
दहेज़ के नाम पर हर बार बहु ही क्यों मारी जानी है।।
दहेज़ देकर रोता है लड़की का परिवार।
वास्तव में क्यों खुश् नही इतना दहेज़ लेकर लड़के का परिवार।।
इन्हें कौन समझाए बहु सुख समृद्धि का द्वार है।
क्यों करते है लोग दहेज़ के नाम पे अत्याचार।।
इन्हें कोई समझाए की बहु के बिना नहीं चल सकता किसी का घर परिवार।
याद रखना दहेज़ लेने वालो बहु ही है घर का सँसार बेटी सामान करो उसको प्यार उसको प्यार।।
ढूंढ रहा तुझे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में। इंसान ही इंसानियत को बेच रहा खुले बाज़ारो में।। अब लड़कियो की चीख सुनाई देती है तहखानों में। अब छोटी लडकिया परोसी जाती है मयखानों में।। यु सुने राहो में लडकिया अब निकलने से डरती है। जन्म लेने से पहले लड़कियां यु कोख़ में मरती है।। क्या हो गया है मेरे प्यारे भारत को क्या हो गया मेरे उस न्यारे भारत को। न है यहाँ लड़कियो की कद्र किसी को। जमाना बदल गया पर न यहाँ है सब्र किसी को।।
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