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Showing posts from March, 2016

बिना तेरे माँ

तुझसे मिलकर मैं पहली बार हँसा बिना तेरे मैं मैंने सिखा रोने।। तूने मेरे खाव्बो को पंख दिए माँ बिना तेरे दुनिया ने दुःख क्या कम दिए मैं ही था एक नादाँन परिंदा बिना तेरे दुनिया में ख़ुशी ढूंढी थी।। आज भी पछताता हु  मैं अपनी उस गलती पे निकाल बहार किया जो तुझे किया घर से।। न पछताया न घबराया अपने उस फैसले से।। डर न लगा तुझसे दूर होने के फैसले से।। आज पछताता हु माँ जब भी तेरा चेहरा सामने आता है।। वो तबाही का मंजर मुझे हर वक़्त सताता है।। माफ़ करना माँ मुझे ,मेरे इस गलती के लिए गम में कटे तेरे उस पल के लिए।। शायद मेरे विचारो में कोई कमी थी।। बिना तेरे न मेरी ज़िन्दगी थी ,न है , न रहेगी।। 29/03/2016

चलने चले थे

चलने चले थे खाव्बो की दुनिया में मंजिल हमारा बसेरा था।। चारो तरफ एक अजीब सा अहसास था हर कोई उजाले की तलास में था।। न साथ दिया किसी ने फिर भी मैं आगे बढ़ा न रुका न थका।।। आई मुश्किल एक बार हँस दिया बिना तेरे मजिल भी बेकार है मेहनत बिना कठिनाई धूल सामान है भीड़ भरे इस संसार में। खाव्ब कही मेरे गुम से हो गए पागलो की तरह ढूंढ़ा आखिर में पता चला।। मंजिल तो कब की मिल चुकी बस अब न रुकना न थकना बस आगे बढ़ना है आगे बढ़ना है।।