चलने चले थे खाव्बो की दुनिया में
मंजिल हमारा बसेरा था।।
चारो तरफ एक अजीब सा अहसास था
हर कोई उजाले की तलास में था।।
न साथ दिया किसी ने
फिर भी मैं आगे बढ़ा
न रुका न थका।।।
आई मुश्किल एक बार हँस दिया
बिना तेरे मजिल भी बेकार है
मेहनत बिना कठिनाई धूल सामान है
भीड़ भरे इस संसार में।
खाव्ब कही मेरे गुम से हो गए
पागलो की तरह ढूंढ़ा
आखिर में पता चला।।
मंजिल तो कब की मिल चुकी
बस अब न रुकना न थकना बस
आगे बढ़ना है आगे बढ़ना है।।
दो गज की ज़मीं थी कफ़न था तिरंगा।। आँखों में नमी थी ,छाती था खून से रंगा।। हार जीत की न कोई वजह बाकि थी,न था कोई पंगा।। न बाकि था निपटाने के लिए कोई दंगा।। शहीद का साथ जुड़ा , मिल गया साहस का चमन। लौट के न आया फिर मैं, तो रूठ गया ये वतन।। खून बहा कर लिया जो पाकिसातनियो ने मज़ा।। आत्मा मेरी पूछ रही किस बात की मिली मुझे सजा।। न मैंने किसी का भाई मारा न किसी का बेटा।। फिर भी क्यों रो रहा फफक फफक कर मेरा बेटा।। मुझे कुछ नहीं एक जवाब चाहिए।। इस सोई हुई सरकार से एक हिसाब चाहिए।। कौन लौटायगा मेरे परिवार को बीते हुए कल ।। कौन संवरेगा मेरे परिवार का आने वाला कल।। मुझे कुछ नहीं मुझे इन्साफ चाहिए।। बस मेरी मौत का मुझे इन्साफ चाहिए।।अमित पटेल
Comments
Post a comment