चलने चले थे खाव्बो की दुनिया में
मंजिल हमारा बसेरा था।।
चारो तरफ एक अजीब सा अहसास था
हर कोई उजाले की तलास में था।।
न साथ दिया किसी ने
फिर भी मैं आगे बढ़ा
न रुका न थका।।।
आई मुश्किल एक बार हँस दिया
बिना तेरे मजिल भी बेकार है
मेहनत बिना कठिनाई धूल सामान है
भीड़ भरे इस संसार में।
खाव्ब कही मेरे गुम से हो गए
पागलो की तरह ढूंढ़ा
आखिर में पता चला।।
मंजिल तो कब की मिल चुकी
बस अब न रुकना न थकना बस
आगे बढ़ना है आगे बढ़ना है।।
ढूंढ रहा तुझे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में। इंसान ही इंसानियत को बेच रहा खुले बाज़ारो में।। अब लड़कियो की चीख सुनाई देती है तहखानों में। अब छोटी लडकिया परोसी जाती है मयखानों में।। यु सुने राहो में लडकिया अब निकलने से डरती है। जन्म लेने से पहले लड़कियां यु कोख़ में मरती है।। क्या हो गया है मेरे प्यारे भारत को क्या हो गया मेरे उस न्यारे भारत को। न है यहाँ लड़कियो की कद्र किसी को। जमाना बदल गया पर न यहाँ है सब्र किसी को।।
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