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चलने चले थे

चलने चले थे खाव्बो की दुनिया में
मंजिल हमारा बसेरा था।।
चारो तरफ एक अजीब सा अहसास था
हर कोई उजाले की तलास में था।।
न साथ दिया किसी ने
फिर भी मैं आगे बढ़ा
न रुका न थका।।।
आई मुश्किल एक बार हँस दिया
बिना तेरे मजिल भी बेकार है
मेहनत बिना कठिनाई धूल सामान है
भीड़ भरे इस संसार में।
खाव्ब कही मेरे गुम से हो गए
पागलो की तरह ढूंढ़ा
आखिर में पता चला।।
मंजिल तो कब की मिल चुकी
बस अब न रुकना न थकना बस
आगे बढ़ना है आगे बढ़ना है।।

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