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गँगा एक वरदान


भारत भूमि की शान है गंगा।।
हिमालय की संतान है गंगा।।
हरिद्वार की जान है गंगा।
हिन्दुस्तान के खेतो के लिए वरदान है गंगा।।
मोक्ष का द्वार है गंगा, जलजीवो का संसार है गंगा।।
मैली होती नदियों का एक उदहारण है गंगा।।
फिर भी अपने पानी से अपने बेटो का दुःख हरण करती है गंगा।।
यु तो सबकी माँ है गंगा ,पर उद्योगों के गंदे पानी के लिए निकास द्वार है गंगा।।
तू भारत की माँ है गंगा।।
जहा जहाँ गई सबको रंग गई तू गंगा।।
आगे गंगा की जुबानी।
तुम मुझे माँ कहते हो ।
फिर मुझ पर हुये अत्याचार क्यों सहते हो।।
मुझमें में कचरा डालो मुझमे तुम हर गन्दा सामान डालो।।
पर एक उपकार तू कर दे मेरे अंदर रहने वाले जीवो को एक नया घर संसार दे दे।।
एक नया परिवार तू दे दे।।
नहीं दे पायेगा ये मुझे पता फिर क्यों मुझे यु दुषित करे ।।
माँ का अपने बेटो के लिए प्यार तुझे ये सन्देश सूचित करे।
धन्य है वो मेरा बेटा जो मेरे लिए हर रोज इंसानो से लडे
खुद के खाने के एक हिस्से से मेरे अंदर रहने वालो का भी पेट भरे ।।
हर वक़्त मुझे तेरी चिंता है तभी तो मैं कल कल कर बहु।
माँ हूँ मै तो अपने बेटे को क्यों गलत करने दू।।
सुन ले मेरा प्यार बेटा गंगा माँ की ये पुकार।।
मुझे तू प्रदुसित होने से बचा क्र दे एक उपकार।।
तुझे दुआ में खुशियां मिलेंगी कर दे छोटा सा उपकार।
खुश् रहेगा मेरे अंदर का संसार ,मुझे मैला होने से बचा दे कर दे उपकार।
बेटा कर दे उपकार।।©ap

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बचपन की यादें

घूमते घूमते याद आ गए मुझे बचपन के वो पल। आज की ही मस्ती होती थी,न चिंता थी खुदा जाने क्या होगा कल।। रोते थे तो सर पे होता था माँ का साया । बचपन में सब के लाडले होते थे,भले ही बड़े होने पर पैसो ने बना दिया उनको पराया।। ना  वक़्त की कमी थी;ना थी खाने की चिंता। अगर अच्छे संस्कार ना होते तो अभी इतना सूंदर भविष्य बनता।। सुबह की वो भागा दौड़ी , जब माँ हमें छोड़ आती आंगनबाड़ी। रोते थे वापस आके सोने के लिए मिलती माँ की फूलो से भरी आँचल वाली प्यारी से साड़ी।। याद आते है बचपन की वो पल जब खेला करते थे सबके साथ लुका छिपी। लूडो खेलते अपनी चाल के साथ की वो थोड़ी बईमानी।। बचपन की वो आज़ादी ,वापस अगर आ जाए तो कुर्बान कर दू उसपे सारी ज़िंदगानी।। याद आते है वो तलाब में नहाना । रात को किसी के भी घर पे खाना ।। याद आते है... मौसी की प्यारी सी फटकार। नानी की ढेर सारी दुलार।। मामा की गुस्सों का डर। चाचा को जो होती हमारी फिकर।। याद आ गया बचपन का वो यार । मस्ती से भरा बचपन का पिटारा।। अपनों का सहारा । बचपन की सारी मस्तियाँ। याद आ गया दोस्त के पैर में किया वो वो दर्दनाक

बेटियां

जन्म से ही माँ पापा की लाड़ली होती है।। दादा दादी की गोद में चैन से सोती है।।। हर दिन को ख़ास बना जाती है।। माँ बाप के लिए हर पल एक याद बना जाती है।।। बचपन में खुद रोती पर दुसरो को हसना सीखा जाती है।।।। वक़्त के साथ वक़्त को चलना सीखा जाती है।। दोस्तों बाद में अपना घर छोड़ दुसरो का संसार बना जाती है।। बिटिया रानी आते ही अपना बना आती है।। जो दुसरो को केवल हसना और खुस रहना सिखा जाती है।।सीखा जाती है।।

इंसानियत तू कहा गया

ढूंढ रहा तुझे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में। इंसान ही इंसानियत को बेच रहा खुले बाज़ारो में।। अब लड़कियो की चीख सुनाई देती है तहखानों में। अब छोटी लडकिया परोसी जाती है मयखानों में।। यु सुने राहो में लडकिया अब निकलने से डरती है। जन्म लेने से पहले लड़कियां यु कोख़ में मरती है।। क्या हो गया है मेरे प्यारे भारत को क्या हो गया मेरे उस न्यारे भारत को। न है यहाँ लड़कियो की कद्र किसी को। जमाना बदल गया पर न यहाँ है सब्र किसी को।।