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वतन



दो गज की ज़मीं थी कफ़न था तिरंगा।।
आँखों में नमी थी ,छाती था खून से रंगा।।
हार जीत की न कोई वजह बाकि थी,न था कोई पंगा।।
न बाकि था निपटाने के लिए कोई दंगा।।
शहीद का साथ जुड़ा , मिल गया साहस का चमन।
लौट के न आया फिर मैं, तो रूठ गया ये वतन।।
खून बहा कर लिया जो पाकिसातनियो ने मज़ा।।
आत्मा मेरी पूछ रही किस बात की मिली मुझे सजा।।
न मैंने किसी का भाई मारा न किसी का बेटा।।
फिर भी क्यों रो रहा फफक फफक कर मेरा बेटा।।
मुझे कुछ नहीं एक जवाब चाहिए।।
इस सोई हुई सरकार से एक हिसाब चाहिए।।
कौन लौटायगा मेरे परिवार को बीते हुए कल ।।
कौन संवरेगा मेरे परिवार का आने वाला कल।।
मुझे कुछ नहीं मुझे इन्साफ चाहिए।।
बस मेरी मौत का मुझे इन्साफ चाहिए।।अमित पटेल
   

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बचपन की यादें

घूमते घूमते याद आ गए मुझे बचपन के वो पल। आज की ही मस्ती होती थी,न चिंता थी खुदा जाने क्या होगा कल।। रोते थे तो सर पे होता था माँ का साया । बचपन में सब के लाडले होते थे,भले ही बड़े होने पर पैसो ने बना दिया उनको पराया।। ना  वक़्त की कमी थी;ना थी खाने की चिंता। अगर अच्छे संस्कार ना होते तो अभी इतना सूंदर भविष्य बनता।। सुबह की वो भागा दौड़ी , जब माँ हमें छोड़ आती आंगनबाड़ी। रोते थे वापस आके सोने के लिए मिलती माँ की फूलो से भरी आँचल वाली प्यारी से साड़ी।। याद आते है बचपन की वो पल जब खेला करते थे सबके साथ लुका छिपी। लूडो खेलते अपनी चाल के साथ की वो थोड़ी बईमानी।। बचपन की वो आज़ादी ,वापस अगर आ जाए तो कुर्बान कर दू उसपे सारी ज़िंदगानी।। याद आते है वो तलाब में नहाना । रात को किसी के भी घर पे खाना ।। याद आते है... मौसी की प्यारी सी फटकार। नानी की ढेर सारी दुलार।। मामा की गुस्सों का डर। चाचा को जो होती हमारी फिकर।। याद आ गया बचपन का वो यार । मस्ती से भरा बचपन का पिटारा।। अपनों का सहारा । बचपन की सारी मस्तियाँ। याद आ गया दोस्त के पैर में किया वो वो दर्दनाक

बेटियां

जन्म से ही माँ पापा की लाड़ली होती है।। दादा दादी की गोद में चैन से सोती है।।। हर दिन को ख़ास बना जाती है।। माँ बाप के लिए हर पल एक याद बना जाती है।।। बचपन में खुद रोती पर दुसरो को हसना सीखा जाती है।।।। वक़्त के साथ वक़्त को चलना सीखा जाती है।। दोस्तों बाद में अपना घर छोड़ दुसरो का संसार बना जाती है।। बिटिया रानी आते ही अपना बना आती है।। जो दुसरो को केवल हसना और खुस रहना सिखा जाती है।।सीखा जाती है।।

इंसानियत तू कहा गया

ढूंढ रहा तुझे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में। इंसान ही इंसानियत को बेच रहा खुले बाज़ारो में।। अब लड़कियो की चीख सुनाई देती है तहखानों में। अब छोटी लडकिया परोसी जाती है मयखानों में।। यु सुने राहो में लडकिया अब निकलने से डरती है। जन्म लेने से पहले लड़कियां यु कोख़ में मरती है।। क्या हो गया है मेरे प्यारे भारत को क्या हो गया मेरे उस न्यारे भारत को। न है यहाँ लड़कियो की कद्र किसी को। जमाना बदल गया पर न यहाँ है सब्र किसी को।।