घूमते घूमते याद आ गए मुझे बचपन के वो पल।
आज की ही मस्ती होती थी,न चिंता थी खुदा जाने क्या होगा कल।।
रोते थे तो सर पे होता था माँ का साया ।
बचपन में सब के लाडले होते थे,भले ही बड़े होने पर पैसो ने बना दिया उनको पराया।।
ना वक़्त की कमी थी;ना थी खाने की चिंता।
अगर अच्छे संस्कार ना होते तो अभी इतना सूंदर भविष्य बनता।।
सुबह की वो भागा दौड़ी , जब माँ हमें छोड़ आती आंगनबाड़ी।
रोते थे वापस आके सोने के लिए मिलती माँ की फूलो से भरी आँचल वाली प्यारी से साड़ी।।
याद आते है बचपन की वो पल
जब खेला करते थे सबके साथ लुका छिपी।
लूडो खेलते अपनी चाल के साथ की वो थोड़ी बईमानी।।
बचपन की वो आज़ादी ,वापस अगर आ जाए तो कुर्बान कर दू उसपे सारी ज़िंदगानी।।
याद आते है
वो तलाब में नहाना ।
रात को किसी के भी घर पे खाना ।।
याद आते है...
मौसी की प्यारी सी फटकार।
नानी की ढेर सारी दुलार।।
मामा की गुस्सों का डर।
चाचा को जो होती हमारी फिकर।।
याद आ गया
बचपन का वो यार ।
मस्ती से भरा बचपन का पिटारा।।
अपनों का सहारा ।
बचपन की सारी मस्तियाँ।
याद आ गया दोस्त के पैर में किया वो वो दर्दनाक experiment..
जिसकी याद रहेगी अब दिल में permanent..
याद है मुझे मेरा प्यार बचपन ।
याद है।।
याद है।।।
जन्म से ही माँ पापा की लाड़ली होती है।। दादा दादी की गोद में चैन से सोती है।।। हर दिन को ख़ास बना जाती है।। माँ बाप के लिए हर पल एक याद बना जाती है।।। बचपन में खुद रोती पर दुसरो को हसना सीखा जाती है।।।। वक़्त के साथ वक़्त को चलना सीखा जाती है।। दोस्तों बाद में अपना घर छोड़ दुसरो का संसार बना जाती है।। बिटिया रानी आते ही अपना बना आती है।। जो दुसरो को केवल हसना और खुस रहना सिखा जाती है।।सीखा जाती है।।
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