Skip to main content

"दहेज़ एक अभिसाप"

बहु नहीं इन्हें दहेज़ चाहिए।
किसी की बेटी के बदले इन्हें कार कुर्शी और मेज चाहिए।।
जब धूम धाम से ब्याह कर के लाते है।
तो फिर क्यों दहेज़ के लिए उन्हें तड़पाते है।।
घर का सुख नहीं बल्कि इन्हें पैसों की भूख मिटानी है।
दहेज़ के नाम पर हर बार बहु ही क्यों मारी जानी है।।
दहेज़ देकर रोता है लड़की का परिवार।
वास्तव में क्यों खुश् नही इतना दहेज़ लेकर लड़के का परिवार।।
इन्हें कौन समझाए बहु सुख समृद्धि का द्वार है।
क्यों करते है लोग दहेज़ के नाम पे अत्याचार।।
इन्हें कोई समझाए की बहु के बिना नहीं चल सकता किसी का घर परिवार।
याद रखना दहेज़ लेने वालो बहु ही है घर का सँसार बेटी सामान करो उसको प्यार उसको प्यार।।

Comments

Popular posts from this blog

बचपन की यादें

घूमते घूमते याद आ गए मुझे बचपन के वो पल। आज की ही मस्ती होती थी,न चिंता थी खुदा जाने क्या होगा कल।। रोते थे तो सर पे होता था माँ का साया । बचपन में सब के लाडले होते थे,भले ही बड़े होने पर पैसो ने बना दिया उनको पराया।। ना  वक़्त की कमी थी;ना थी खाने की चिंता। अगर अच्छे संस्कार ना होते तो अभी इतना सूंदर भविष्य बनता।। सुबह की वो भागा दौड़ी , जब माँ हमें छोड़ आती आंगनबाड़ी। रोते थे वापस आके सोने के लिए मिलती माँ की फूलो से भरी आँचल वाली प्यारी से साड़ी।। याद आते है बचपन की वो पल जब खेला करते थे सबके साथ लुका छिपी। लूडो खेलते अपनी चाल के साथ की वो थोड़ी बईमानी।। बचपन की वो आज़ादी ,वापस अगर आ जाए तो कुर्बान कर दू उसपे सारी ज़िंदगानी।। याद आते है वो तलाब में नहाना । रात को किसी के भी घर पे खाना ।। याद आते है... मौसी की प्यारी सी फटकार। नानी की ढेर सारी दुलार।। मामा की गुस्सों का डर। चाचा को जो होती हमारी फिकर।। याद आ गया बचपन का वो यार । मस्ती से भरा बचपन का पिटारा।। अपनों का सहारा । बचपन की सारी मस्तियाँ। याद आ गया दोस्त के पैर में किया वो वो दर्दनाक

बेटियां

जन्म से ही माँ पापा की लाड़ली होती है।। दादा दादी की गोद में चैन से सोती है।।। हर दिन को ख़ास बना जाती है।। माँ बाप के लिए हर पल एक याद बना जाती है।।। बचपन में खुद रोती पर दुसरो को हसना सीखा जाती है।।।। वक़्त के साथ वक़्त को चलना सीखा जाती है।। दोस्तों बाद में अपना घर छोड़ दुसरो का संसार बना जाती है।। बिटिया रानी आते ही अपना बना आती है।। जो दुसरो को केवल हसना और खुस रहना सिखा जाती है।।सीखा जाती है।।

इंसानियत तू कहा गया

ढूंढ रहा तुझे मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में। इंसान ही इंसानियत को बेच रहा खुले बाज़ारो में।। अब लड़कियो की चीख सुनाई देती है तहखानों में। अब छोटी लडकिया परोसी जाती है मयखानों में।। यु सुने राहो में लडकिया अब निकलने से डरती है। जन्म लेने से पहले लड़कियां यु कोख़ में मरती है।। क्या हो गया है मेरे प्यारे भारत को क्या हो गया मेरे उस न्यारे भारत को। न है यहाँ लड़कियो की कद्र किसी को। जमाना बदल गया पर न यहाँ है सब्र किसी को।।